Following poem written by my Babaji(Grandpa) :
मन में,तन में, जीवन में वसंत है छाया
यह वासंती मौसम, उस पर ठंड गुलाबी,
                                             बहका मन ज्यों बिना पिए ही हुआ शराबी
वेद ऋचाओं को दोहरातें रहें भले ही,
                                             उनसे मिल पता है केवल ज्ञान किताबी
उनकी पावनता का हो जीवन में अनुभव,
                                             यही सोच कर ऋजु - ऋचा परिणय करवाया
जीवन में वसंत है छाया
कुछ निर्वाह करें कुछ बदलें रिवाज अब,
                                              ऐसा सफल प्रयास किया संभव
उत्सव में दिन की शादी बिना चढ़त के बिना बैंड के,
                                              दिखलाया ऐसा अभिनव करतब उत्सव में
जैन और कंसल परिवारों की सहमति से,
                                              नई प्रथाओं का था सूत्रपात करवाया
जीवन में वसंत है छाया
नौ फरवरी नवल इतिहास बनाती आई,
                                              सबके मन में नव उल्लास जगाती आइ
जिस दिन 'आभा' ने थी जयमाला पहनाई,
                                              ठीक उसी दिन बजी 'ऋचा' द्वार शहनाई
हो 'विनोद' या 'ऋजु' बने दोनों ही वर,
                                              सास बहू ने परिणय उत्सव साथ मनाया
यह अपूर्व संयोग देख मन हरषाया,
धीर और गंभीर पिता जैसा स्वभाव पा,
                                              ऋजु ने जीवन जीना मां से ही था
शिक्षित और सुंसंस्कृत सहधर्मिणी मिली है,
                                              कार्य क्षेत्र नवयुग प्रतीक मुम्बई सरीखा
तीन महानगरों का मिलन त्रिकोण बनाकर,
                                              दो धर्मों ने है अंतर्संबंध बनाया, देख कर मन हरषाया
परम्पराओं की धरती पर पाँव टिका कर,
                                              ऋजु सफलता का आकाश तुम्हे छूना है
ऋचा प्रेरणा पा उन्नति के शिखर छुओ तुम,
                                              जीवन पथ पर गति उत्साह हुआ दूना है
रहे हाथ में हाथ, न ही घर में बाहर भी,
                                              कहें सभी जीवन तुमने आदर्श बनाया
जीवन में वसंत है छाया
- आर्याभुषण गर्ग
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